थूकने की समस्या का समाधान बन कर उभरा 'ईजीस्पिट', सरकार का भी मिला सपोर्ट

Aug 23, 2022 - 19:17
Aug 23, 2022 - 19:18
थूकने की समस्या का समाधान बन कर उभरा 'ईजीस्पिट', सरकार का भी मिला सपोर्ट
थूकने की समस्या का समाधान बन कर उभरा 'ईजीस्पिट', सरकार का भी मिला सपोर्ट

ईजीस्पिट स्टार्टअप का उद्देश्य सार्वजनिक जगह थूकने की बढ़ती समस्या पर अंकुश लगाने के लिए भारत मे इको-फ्रेंडली स्पिटून के उत्पाद के बारे में जागरूकता फैलाना है। यह अभियान मानव थूक के कचरे से पौधों को विकसित करने के विचार के साथ बनाया गया है। 

जैसा की हम सभी जानते है की खुले में थूकने की आदत बहुत ख़राब होती है और इसके दाग धब्बों को साफ करना अपने आप में एक चुनौती है। अगर हम किसी भी सार्वजानिक स्थान पर थूकते हैं तो उसके कण 27 फीट तक हवा मे फैल सकते है। यह कीटाणु सभी उम्र के लोगों के लिए घातक है जिनमें बुजुर्ग, बच्चे, गर्भवती महिलाऐं भी शामिल हैं, यही नहीं देश में टीबी जैसी बीमारी को फ़ैलाने में भी इन्हीं थूक से उत्पन्न कीटाणुओं का अहम योगदान है। वैश्विक महामारी कोविड-19 की पहली व दूसरी लहर के दौरान भी सार्वजानिक स्थानों में थूकना मना किया गया था ताकि वायरस का फैलाव को रोका जा सके। 

ईजीस्पिट के साथ मिलकर कई बड़ी-बड़ी कंपनियां भारत को स्पीट फ्री बनाने के लिए काम कर रही है लिस्ट में भारतीय रेल, रिलायंस, टाटा हिताची, रेमंड, ऐम्स हॉस्पिटल, जेएसडब्लू (भूषण स्टील यूनिट), आई एम टी इंस्टिट्यूट, दिल्ली पब्लिक स्कूल और औरंगाबाद मुंसिपल कारपोरेशन और कई बड़े नाम शामिल है। 

ईजीस्पिट अब तक 17,40,17,386 करोड़ स्पिट्स लॉक कर चुका है और इसका सीधा फायदा देश के लगभग 52,22,10,000 करोड़ लोगों को हुआ है।

भारत में डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट के तहत 2005 से सार्वजानिक स्थान में थूकने पर चालान है और इसकी राशि 200 से 5000 रूपए तक है। 

भारतीय रेल हर साल थूकने के कारण बने दाग धब्बे व निशानों को साफ़ करने के लिए 1200 करोड़ रूपए और साथ में ढेर सारा पानी खर्च करती  हैं। रेलवे स्टेशन  के अलावा बस स्टैंड, हॉस्पिटल, बाज़ारों और कई अन्य सार्वजानिक स्थानों में भी थूक के धब्बे  देखने को मिलते हैं । जिस तरह अनेक सार्वजानिक स्थानों में शौचालय, कूड़ा दान आदि  की उचित व्यवस्था है उसी प्रकार थूकने की भी कोई उचित व्यवस्था होनी जरुरी है ताकि लोग किसी भी स्थान पर थूक न सकें और संक्रमण न फैले। । इसमें 20 या उससे अधिक बार थूका जा  सकता है। थूकने पर यह उसे सोख लेते हैं और बाद में इसे मिटटी में डाल सकते हैं जहाँ पौधा भी उगाया जा सकता है।
ईजीस्पिट यह तकनीक का इस्तेमाल करके अब तक 7500 पौधों का पौधारोपण किया जा चुका है सफाई के साथ पौधारोपण के इस अनोखे इनोवेशन की तारीफ़ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर रतन टाटा भी कर चुके हैं। 

ख़ुशी जाहिर करते हुए ईजीस्पिट की को फाउंडर रितु मल्होत्रा और उनकी टीम ने कहा, "हमें यकीन है कि यह सार्वजनिक जगह थूकने के धारणा को तोड़ देगा और इस अभियान का उद्देश्य व्यक्तियों के बीच खुले में थूकने से हतोत्साहित करना और बदले में इन पुन: प्रयोज्य स्पिटून के उपयोग के बारे में जागरूकता फैलाना है। यह पॉकेट पाउच (10 से 15 बार पुन: प्रयोज्य), मोबाइल कंटेनर (20 ,30,40 बार पुन: प्रयोज्य) और स्पिटबिन (2000 से 5000 बार पुन: प्रयोज्य) में उपलब्ध है, इज़ीस्पिट स्पिटून में मैक्रोमोलेक्यूल पल्प पेटेंटेड तकनीक है और यह एक ऐसी सामग्री से लैस है जो लार में मौजूद बैक्टीरिया और वायरस को लाॅक करती है। हम 2015 से इस प्रोडक्ट को बनाने के लिए अध्यन कर रहे थे और आज हम इसे लेकर देश के सामने आये हैं। हमारा यह प्रयास स्वच्छ भारत और आत्मनिर्भर भारत को सफल बनाने का है। सबसे अनोखी बात इसकी पुरी मैन्युफैक्चरिंग महिलाओं की टीम संभाल रही है 24 महिलाओं की टीम इस विशेष इनोवेशन संभाल रही हैं. हमारा उद्देश्य मनुष्यों और प्रकृति के बीच संबंधों सुधारना है, और पारिस्थितिकी तंत्र में सुंदरता और स्वास्थ्य को बढ़ावा देना है। इन्हीं चीजों पर ही हमारा अस्तित्व और स्वास्थ निर्भर हैं।