भारत के लोग की संकल्पना को साकार करने में बाबा साहब की महती भूमिका- प्रो. रेगर

इस कार्यक्रम की शुरुआत अतिथियों द्वारा बाबासाहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर की प्रतिमा के समक्ष दीप प्रज्ज्वलन एवं माल्यार्पण किया गया | अतिथियों का स्वागत प्रो. मीना बरडिया ने करते हुए डॉ. अंबेडकर के दर्शन पर प्रकाश डाला ।

भारत के लोग की संकल्पना को साकार करने में बाबा साहब की महती भूमिका- प्रो. रेगर
संवाददाता: किरण राजपुरोहित 
जोधपुर . जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय के कला संकाय अंतर्गत संचालित आदिवासी अध्ययन केंद्र, राजनीति विज्ञान विभाग एवं छात्र सेवा मंडल के सहयोग से कला संकाय के सभागार में राष्ट्र निर्माता भारत रत्न डॉ. भीमराव अंबेडकर की जयंती हर्षोल्लास के साथ मनाई गई। इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में कला संकाय के अधिष्ठाता एवं सिंडिकेट सदस्य प्रो. किशोरी लाल रेगर, मुख्य वक्ता के रूप में राजनीति विज्ञान विभाग की अध्यक्ष प्रो. कांता कटारिया, समन्वयक छात्र सेवा मंडल के अध्यक्ष प्रो. मीना बरडिया, कार्यक्रम संयोजक आदिवासी अध्ययन केंद्र के निर्देशक डॉ. जनक सिंह मीणा रहे ।
इस कार्यक्रम की शुरुआत अतिथियों द्वारा बाबासाहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर की प्रतिमा के समक्ष दीप प्रज्ज्वलन एवं माल्यार्पण किया गया | अतिथियों का स्वागत प्रो. मीना बरडिया ने करते हुए डॉ. अंबेडकर के दर्शन पर प्रकाश डाला । मुख्य वक्ता के रूप में प्रो. कांता कटारिया ने  उद्बोधन में कहा कि डॉ. अंबेडकर ने इतिहास की धारा को बदल कर रख दिया और उनका कार्य लीक से हटकर था ।
वे राष्ट्र निर्माता के साथ-साथ युग दृष्टा थे तथा वे सदैव ऐसा समाज बनाने के पक्षधर रहे जिसमें समानता, स्वतंत्रता, भ्रातृत्व, बंधुता, गरिमा, न्याय आदि का समावेश हो। प्रो. कटारिया ने कहा कि बाबासाहेब अपने ज्ञान के बल पर शून्य से शिखर तक पहुंचे और उन्होंने स्त्री कल्याण, मजदूरों, किसानों, अल्पसंख्यकों, दबे कुचले वर्गों की आवाज उठाई तथा उन्होंने पूरे देश और दुनिया के लिए नया मार्ग प्रशस्त किया। प्रो. किशोरी लाल ने अपने उद्बोधन में कहा कि बाबासाहेब महानायक  थे । और उन्होंने जिस तरह की विपरीत परिस्थितियों में अदम्य साहस और धैर्य के साथ शिक्षा के माध्यम से ज्ञान को अर्जित कर उसे व्यवहारिकता का रूप प्रदान किया वह निसंदेह हम सभी के लिए प्रेरणास्पद है ।
प्रो. रैगर ने मार्टिन लूथर किंग जूनियर के विचारों की डॉ. अंबेडकर के विचारों के साथ तुलना करते हुए कहा कि अमेरिका में लोग इसलिए पीड़ित में थे कि उनकी अपनी कोई मातृभूमि नहीं थी,परंतु लूथर किंग ने कहा कि आपकी अपनी मातृभूमि होते हुए भी आप अधिक पीड़ित, शोषित एवं तिरस्कृत हैं ।
इसके लिए बाबासाहेब ने समता, अस्मिता की बात करते हुए गरिमा में जीवन जीने का अधिकार पर बल दिया साथ ही उन्होंने गोलमेज सम्मेलन और बाबासाहेब की पारिवारिक परिस्थितियों का जिक्र करते हुए उनके आदर्शों और विचारों को आत्मसात करने पर बल दिया। आदिवासी अध्ययन केंद्र के निदेशक डॉ. जनक सिंह मीणा ने डॉ. अंबेडकर के पंचतीर्थ की ओर इशारा करते हुए कहा कि हमें उनके जन्म स्थान जो मध्यप्रदेश के महू में स्थित है, दूसरा शिक्षा इंग्लैंड में, तीसरा दीक्षा नागपुर में जहां उन्होंने बौद्ध धर्म ग्रहण किया, महापरिनिर्वाण दिल्ली में तथा चैतन्य भूमि उनकी मुंबई रही। डॉ. मीणा ने कहा कि ज्ञान ही सफलता का मूल मंत्र है और बाबासाहेब का मानना था कि ज्ञान हर व्यक्ति के जीवन का आधार है अतः हम सभी को मानवतावादी चिंतन को आत्मसात करना चाहिए ।
डॉ. अंबेडकर समाज और प्रकृति के प्रति वैज्ञानिक एवं विवेक सम्मत दृष्टिकोण रखते हैं और उन्होंने धर्म के पांच आधारभूत तत्व बताएं जिनमें प्रज्ञा, करुणा, दया, मैत्री एवं प्रेम । कार्यक्रम के अंत में प्रो. यादराम मीणा ने सभी अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापन किया। इस अवसर पर अंग्रेजी विभागाध्यक्ष प्रो. कल्पना पुरोहित, ललित कला विभाग अध्यक्ष डॉ. रेनू शर्मा, प्रो. एस के हरित, वीडियो फिल्म एवं फोटोग्राफी संस्थान के निदेशक अमित सांखला, दिल्ली विश्वविद्यालय के डॉ महावीर गेनवा, डॉ मीनाक्षी मीणा, डॉ अश्विनी आर्य, डॉ ललित पवार, डॉ भरत कुमार, डॉ प्रवीण चंद्र, डॉ. श्रवण कुमार सहित बड़ी संख्या में शोधार्थी एवं छात्र छात्राएं उपस्थित रहे।